❓ गलती किसकी थी? – विटिलिगो की सच्चाई
“कभी आपने सोचा है… कि कोई गलती हो…
और उसकी सज़ा मिले…
लेकिन वो गलती आपकी हो ही न?”
हम बात कर रहे हैं उस ‘गलती’ की —
जिसके चलते हमारी त्वचा का रंग चला गया…
और साथ ही बदल गया समाज का नज़रिया भी।
🤔 गलती किसकी थी?
क्या हमने कुछ गलत खा लिया था?
क्या किसी ग़लत माहौल में चले गए थे?
या किसी गहरे मानसिक आघात का असर था?
नहीं।
असल में जो हुआ, वह था —
हमारे ही शरीर का हमारी ही कोशिकाओं से लड़ जाना।
हमारे इम्यून सिस्टम का, हमारी त्वचा के रंग बनाने वाली कोशिकाओं (Melanocytes) को पहचानने से इनकार कर देना।
यह है:
Autoimmune Disease —
एक अनजानी, अदृश्य लेकिन गहरी लड़ाई।
🙋 लेकिन सवाल ये है…
अगर गलती शरीर की थी,
तो नज़रिया समाज का क्यों बदला?
किसी के रंग चले जाने से
उसकी हँसी, उसकी समझ, उसकी अच्छाई —
क्यों फीकी मानी जाने लगी?
क्या इंसान की पहचान सिर्फ रंग से होती है?
🌈 रंग बदला है, इंसान नहीं!
हम अब छिपना नहीं चाहते।
अब हम पूछना चाहते हैं:
क्या आपको भी रंग देखकर इंसानियत दिखती है?
क्या आपकी सोच इतनी उथली है कि रंग जाते ही
व्यक्ति की कद्र भी चली जाती है?
हमारी आत्मा का रंग आज भी वही है —
शायद अब और भी गहरा हो गया है।
🤝 हम अकेले नहीं हैं
हम जुड़ रहे हैं।
हम बदलाव ला रहे हैं।
विटिलिगो कोई शर्म नहीं — यह हमारी ताक़त है।
अब समय है इस समाज को यह बताने का कि:
गलती किसी की नहीं थी।
यह तो सिर्फ हमारी पहचान की एक नई शुरुआत थी।
📣 Call to Action
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