कभी मुझे खुद से डर लगता था – विटिलिगो की सच्ची स्वीकारोक्ति

🌱 प्रस्तावना

कभी मुझे खुद से डर लगता था…
हाँ, ये सच है।

विटिलिगो सपोर्ट इंडिया की शुरुआत से पहले, मैं अपने ही दागों से डरता था। आईना देखते ही सवाल उठता — क्या लोग मुझे भी उसी नज़र से देखेंगे जैसे मैं खुद को देखता हूँ?


💭 डर से स्वीकारोक्ति तक

  • जब किसी सफेद दाग वाले व्यक्ति को देखता, तो अंदर बेचैनी सी होने लगती।

  • मन पूछता — क्या ये भी मेरी तरह अकेला महसूस करता होगा?

  • सबसे ज्यादा दर्द तब होता, जब मैं लड़कियों को देखता। सोचता — इनकी शादी कैसे होगी? क्या ये भी समाज की जालिम नजरों को सह पाएंगी?

उस समय मैं ईश्वर से प्रार्थना करता था — हे भगवान! कम से कम लड़कियों को ये रोग मत देना…


🔑 असली समझ

धीरे-धीरे एहसास हुआ —
👉 अगर मैं खुद को स्वीकार नहीं कर पा रहा, तो दूसरों से क्या उम्मीद रखूं?

यही सोच विटिलिगो सपोर्ट इंडिया की नींव बनी।
यह सिर्फ़ एक चैनल नहीं, बल्कि एक कोशिश है —

  • अपने डर को तोड़ने की,

  • अपने अनुभवों को साझा करने की,

  • और दूसरों को हिम्मत देने की।


🔥 डर से हिम्मत तक

मैं खुद से डरा करता था —
दागों से, सवालों से, समाज की नजरों से, यहाँ तक कि आईने की परछाईं से भी।

पर एक दिन मैंने तय किया:
अब और नहीं।
अब डर को ही हिम्मत की मशाल बनाना है।

आज मैं वही दाग सीने पर गर्व से सजाता हूँ और कहता हूँ:
👉 “मैं जैसा हूँ, वैसा ही ठीक हूँ — यही मेरी पहचान है!”


🌟 संदेश

अगर आप भी कभी खुद से डरे हैं, तो इस कहानी को किसी ऐसे इंसान के साथ ज़रूर शेयर करें जो आज भी खुद से लड़ रहा है।
क्योंकि आपकी एक क्लिक किसी की ज़िंदगी में रोशनी ला सकती है।

👉 डरो मत, बढ़ो — समाज को बदलो!


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