इच्छाएँ: फैशन और मीडिया में मिले उचित प्रतिनिधित्व
लेखक: रविन्द्र जायसवाल
श्रेणी: सामाजिक बदलाव | सौंदर्य की परिभाषा | विटिलिगो जागरूकता
क्या आपने कभी गौर किया है कि फैशन और मीडिया में सुंदरता की एक तय परिभाषा बार-बार दोहराई जाती है?
एक खास रंग, बेदाग त्वचा, और “परफेक्ट” फीचर्स — यही दिखता है हर विज्ञापन, मैगज़ीन कवर या फैशन शो में।
पर सवाल ये है — क्या इसी को ही सुंदरता कहा जा सकता है?
विटिलिगो और अन्य स्किन कंडीशन्स का प्रतिनिधित्व कहाँ है?
जब हम टीवी या सोशल मीडिया पर देखते हैं, तो हमें शायद ही कभी वे चेहरे दिखाई देते हैं जो विटिलिगो, एल्बिनिज़्म, बर्थमार्क्स या किसी अन्य स्किन कंडीशन के साथ जी रहे हैं।
क्या उनका आत्मविश्वास कम है? क्या वे खूबसूरत नहीं हैं?
बिलकुल हैं! पर उन्हें मंच नहीं दिया जाता।
फैशन और मीडिया हमारे सोच को आकार देते हैं
मीडिया वह आईना है जो समाज को खुद को देखने का नजरिया देता है।
अगर हर जगह एक ही तरह की खूबसूरती को दिखाया जाएगा,
तो समाज भी उसी को “मानक” मान लेगा।
और बाकी सभी खुद को उस मानक से नीचे महसूस करने लगते हैं।
विविधता में है असली सुंदरता
हर इंसान की त्वचा, बनावट, रंग और पहचान अलग होती है — और यही विविधता इंसान को खूबसूरत बनाती है।
जब शरीर की विविधताओं, बॉडी पॉज़िटिविटी, और विकलांगता को फैशन में जगह दी जा सकती है,
तो स्किन कंडीशन्स वाले लोगों को क्यों नहीं?
विटिलिगो जैसी स्थितियाँ जैविक प्रक्रियाओं का हिस्सा हैं — न कि कोई दोष।
इनका इंसान की काबिलियत, टैलेंट या आत्मविश्वास से कोई संबंध नहीं होता।
अब समय है बदलाव का – और वह आपसे शुरू होता है
हमें ऐसे रोल मॉडल्स की ज़रूरत है जो सच्ची विविधता को दर्शाएँ —
ऐसे चेहरे जो सिर्फ “बेदाग सुंदरता” नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन की सुंदरता दिखाएँ।
विज्ञापन, फिल्में, और सोशल मीडिया सभी को प्रतिनिधित्व देना चाहिए।
ताकि अगली पीढ़ी को खुद से शर्म न आए — बल्कि खुद पर गर्व हो।
📢 अगर आप भी मानते हैं कि फैशन और मीडिया में सभी को बराबरी से दिखाया जाना चाहिए, तो इस ब्लॉग को शेयर करें, कमेंट करें और इस बदलाव का हिस्सा बनें।
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