सुशील की आख़िरी मुस्कान – एक दोस्त की याद में, जो कभी भूले नहीं जाते

नमस्कार दोस्तों,

आज मैं आपके सामने एक सच्ची कहानी लेकर आया हूँ…
यह कहानी है दोस्ती की, जज़्बातों की, और एक ऐसे यार की, जो आज हमारे बीच नहीं है —
मगर उसकी यादें, उसके साथ बिताए हर पल, आज भी मेरी रग-रग में ज़िंदा हैं।

बचपन से ही दोस्त बनाना मेरी आदत थी।
दोस्ती मेरे लिए महज़ एक रिश्ता नहीं — एक जिम्मेदारी थी।
मैं हमेशा वह पुल बन जाता था, जो सबको जोड़ता है।

हमारे उस छोटे से ग्रुप में एक खास दोस्त था — सुशील।
नाम जैसा ही सीधा, सरल, और दिल से बेहद नेक।
उसे खाना बनाना बहुत पसंद था — और उससे भी ज़्यादा, दोस्तों को अपने हाथों से खिलाना।


🍲 वो सुनहरे दिन…

हम अक्सर पार्क में मिलते, मस्ती करते, कुछ पकाते और मिलकर खाते।
हँसी, ठिठोली, शोर, और दोस्ती की गर्माहट — वो दिन आज भी मेरी आँखों में ताज़ा हैं।

लेकिन फिर…
सब कुछ अचानक बदल गया।


🏥 जब सुशील ने कहा – “शायद ज़्यादा दिन नहीं हैं…”

कई दिन वह नहीं दिखा, तो हम मिलने पहुँचे।
वह चुपचाप, बहुत उदास बैठा था।
धीरे से बोला –
“मुझे हेपेटाइटिस बी हो गया है… और शायद अब ज़्यादा दिन नहीं हैं…”

हम सब स्तब्ध रह गए।
मगर मैं और मेरा दोस्त अरविंद, दोनों ने ठान लिया —
“हम हार नहीं मानेंगे।”

उसे लेकर हम लखनऊ के SGPGI अस्पताल पहुँचे।
इलाज शुरू हुआ… दवाइयाँ चलीं… उम्मीदें भी।
वह कुछ हद तक ठीक होने लगा।

लेकिन एक साल बाद फिर तबियत बिगड़ी।
इस बार उसे खून की ज़रूरत थी।


🩸 एक सच्चे दोस्त की पहचान…

हमारे दोस्ती के ग्रुप ने एक बार फिर साथ निभाया —
हम सबने मिलकर उसके लिए खून दिया।
उस दिन उसकी हालत कुछ बेहतर हुई।


📉 लेकिन फिर…

मैं अपनी नौकरी के लिए इलाहाबाद से मथुरा शिफ्ट हो गया।
एक दिन कॉलेज की लाइब्रेरी में बैठा था, जब फोन आया —
सुशील अब इस दुनिया में नहीं रहा…

उस पल, जैसे मेरी आत्मा का एक टुकड़ा टूट गया।
मैं लाइब्रेरी के कोने में फूट-फूटकर रोया।
आज भी जब वह पल याद आता है —
आँखें भर आती हैं…


🕯️ सुशील अब नहीं है… लेकिन उसकी यादें हैं।

आज जब मुझे अपने अनुभवों को लिखने का अवसर मिला,
तो सबसे पहले वही चेहरा आँखों के सामने आया —
जो अब भले ही ना हो, लेकिन हर शब्द में ज़िंदा है।


🧠 यह कहानी विटिलिगो की नहीं है, लेकिन यह भी एक बीमारी की कहानी है।

बीमारी कोई भी हो,
उससे लड़ने के लिए सबसे ज़रूरी है – दोस्ती का साथ, परिवार का सहारा, और समाज की समझ।

कभी भी अपने किसी दोस्त, परिवार या समाज के सदस्य को अकेला न छोड़ें।
क्योंकि…

“ज़िंदगी में दाग नहीं, दूरी मार देती है।”


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