सीमा पर बहादुर, समाज में क्यों खामोश?

सीमा पर बहादुर, समाज में क्यों खामोश?

एक सफेद दाग वाले फौजी की सच्ची कहानी

(लेखक की कलम से – भावुक और जोशीला संदेश)

बीती रात एक दोस्त से बात हुई…
उसने एक बात कही, जो दिल को छू गई।
उसके एक रिश्तेदार सेना में हैं।
भारत माता की रक्षा के लिए
वो दुर्गम पहाड़ियों और बर्फीली सीमाओं पर दिन-रात तैनात रहते हैं।

लेकिन जब वो फौजी छुट्टी लेकर अपने गांव लौटते हैं…
तो अपनी ही मिट्टी में खुद को छुपाकर रखते हैं।

क्यों?

क्योंकि उनकी त्वचा पर सफेद दाग है।
गांव की गलियों में निकलने से हिचकिचाते हैं…
लोगों की नजरों से बचते हैं।
जिसने कभी दुश्मन की बंदूक से नहीं डरा,
वो आज अपनों की सोच से डर रहा है।


❗क्या वाकई इतना आसान है किसी को तोड़ देना?

सिर्फ इसलिए कि उसकी त्वचा पर रंग बदल गया?
क्या हम किसी की पहचान को उसकी त्वचा के आधार पर आंक सकते हैं?
क्या एक वीर सैनिक का सम्मान,
उसकी वर्दी से नहीं — उसकी त्वचा से तय होगा?


सफेद दाग कोई पाप नहीं!

यह न छूआछूत है,
न कोई संक्रमण,
न कोई अभिशाप।
यह सिर्फ एक स्किन कंडीशन है —
बस रंग बदला है, जज़्बा नहीं।


🔥 अब वक्त है – चुप्पी तोड़ने का!

हमें समझना होगा कि एक फौजी,
जो हमारी सुरक्षा के लिए अपनी जान दांव पर लगाता है,
उसके आत्मसम्मान को भी
हमारी सोच की सरहदों से आज़ादी चाहिए।

हमें कहना है अपने उस वीर सपूत से:

“आपने देश की रक्षा की है,
अब समाज के लिए आवाज़ उठाइए।
आपका सफेद दाग आपकी कमजोरी नहीं,
आपकी लड़ाई का तमगा है!”


💔 “दाग नहीं, ये पहचान है” – कविता के रूप में

बीती रात एक बात ने दिल छू लिया,
एक वीर फौजी… जो सरहद से लौटा था,
पर अपने ही गांव में छुपा-छुपा सा रहता था।

ना कोई जश्न, ना मिलना-जुलना,
ना बचपन की गलियों में चलना,
क्यों?
क्योंकि उसकी त्वचा पर सफेद दाग था…

वो दाग…
जो गोली से भी ज़्यादा गहरे ज़ख्म दे गया,
जो उसके आत्मसम्मान पर समाज की नज़र बन गया।

जिसने सीमा पर दुश्मन को पछाड़ा,
वो आज अपने गांव में नजरों से हार गया…

लेकिन अब नहीं!
अब हम चुप नहीं बैठेंगे!
अब ये समाज बदलेगा —
क्योंकि फौजी का सम्मान उसके रंग से नहीं,
उसके जज़्बे से तय होता है!

वो दाग नहीं है,
वो तो उसके संघर्ष की पहचान है।

हर वो सफेद निशान —
उसकी बहादुरी, उसकी कुर्बानी की कहानी है।

तो सुन लो ऐ समाज…
अगर तुमने एक वीर को उसकी त्वचा से तौला,
तो तुमने अपने ही रक्षक का अपमान किया।

हम साथ खड़े हैं उस फौजी के,
और हर उस इंसान के —
जो रंग से नहीं,
रंगत-ए-दिल से पहचान रखता है।

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