नमस्कार दोस्तों,
आज मैं आपके सामने एक सच्ची कहानी लेकर आया हूँ — एक ऐसी कहानी जो हमें सोचने पर मजबूर कर देती है कि हम वास्तव में आज भी कहाँ खड़े हैं?
यह कहानी है एक ऐसे पिता की, जो खुद विटिलिगो (सफेद दाग) से पीड़ित हैं — और उनकी पत्नी भी।
दोनों ने पूरी जिंदगी समाज की नजरों और तानों को सहा, लेकिन कभी हार नहीं मानी।
ईश्वर की कृपा से उनके दो सुंदर, स्वस्थ बच्चे हुए — दोनों ही विटिलिगो से पूरी तरह मुक्त।
समय बीता और बच्चे बड़े हुए।
जब बड़े बेटे की शादी की चर्चा शुरू हुई, तो बातचीत फोन पर प्रारंभ हुई।
लड़की वाले पढ़े-लिखे, समझदार और डॉक्टर परिवार से थे।
बातचीत सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रही थी, लेकिन फिर मिलने का प्रस्ताव आया।
इसी दौरान लड़की के परिवार को यह पता चला कि लड़के के माता-पिता को विटिलिगो है।
डॉक्टर पिता ने पूछा:
“क्या लड़के को भी विटिलिगो है?”
उत्तर मिला:
“नहीं, दोनों बच्चों को यह समस्या नहीं है। केवल माता-पिता को है।”
इसके बाद क्या हुआ?
रिश्ता वहीं खत्म कर दिया गया।
मिलने से ही मना कर दिया गया — सिर्फ इस कारण कि माता-पिता को विटिलिगो है।
अब सोचिए —
जब डॉक्टर जैसे पढ़े-लिखे लोग भी इस तरह की सोच रखते हैं,
तो समाज के आम व्यक्ति से हम क्या उम्मीद करें?
👉 विटिलिगो कोई छूआछूत नहीं है।
👉 यह संक्रामक नहीं है।
👉 यह किसी के खानपान, छूने या संपर्क से नहीं फैलता।
👉 यह केवल एक त्वचा संबंधी स्थिति है — और इससे ज्यादा कुछ नहीं।
दुर्भाग्य की बात यह है कि हम बीमारी से नहीं, बल्कि समाज की सोच से डरते हैं।
इसलिए ही Vitiligo Support India का उद्देश्य है:
✅ समाज में जागरूकता फैलाना।
✅ पुराने मिथकों और भ्रांतियों को तोड़ना।
✅ उन आवाजों को मंच देना जिन्हें अक्सर दबा दिया जाता है।
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