गलती किसकी थी? – विटिलिगो की सच्चाई और समाज का नज़रिया
कभी आपने सोचा है…
कोई गलती हो… और उसकी सज़ा मिले…
लेकिन वो गलती आपकी हो ही न?
हाँ, हम बात कर रहे हैं विटिलिगो की।
एक ऐसी स्थिति जिसने न सिर्फ़ हमारा रंग बदला, बल्कि समाज का नज़रिया भी।
क्या ये गलती हमारे खाने की थी?
हमारे रिश्तों की?
किसी मानसिक आघात की?
असल सच्चाई है —
ये एक Autoimmune Disease है।
हमारे शरीर का हमारी ही कोशिकाओं से लड़ जाना।
हमारे इम्यून सिस्टम का हमारी त्वचा की रंग बनाने वाली कोशिकाओं को
“अपना” मानने से इनकार कर देना।
एक अदृश्य, अनजानी लड़ाई।
लेकिन सवाल ये है…
गलती अगर शरीर की थी,
तो समाज का नज़रिया क्यों बदला?
क्यों किसी का रंग उड़ जाने से उसकी हँसी, उसकी समझ,
उसका व्यक्तित्व फीका हो जाता है?
हम अब छिपना नहीं चाहते।
हम अब पूछना चाहते हैं —
क्या आपको भी रंग देखकर इंसानियत दिखती है?
क्योंकि हमारी आत्मा का रंग आज भी वही है…
शायद और भी गहरा हो गया है।
हम अकेले नहीं हैं।
हम जुड़ रहे हैं, हम बोल रहे हैं,
और हम बदलाव ला रहे हैं।
विटिलिगो शर्म नहीं, यह हमारी ताक़त है।
चलिए मिलकर इस समाज को बताएं —
गलती किसी की नहीं थी।
यह तो हमारी पहचान की एक नई शुरुआत थी।
🌐 और जानिए: vitiligosupportindia.org