🕉️ सफेद दाग को आयुर्वेद में “कुष्ठ” क्यों कहा गया?
भ्रांतियाँ, सच्चाई और सम्मान की नई दृष्टि
✍️ ब्लॉग पोस्ट
नमस्कार दोस्तों,
आज हम एक बेहद ज़रूरी विषय पर बात करेंगे — ऐसा विषय जिसे लेकर समाज में अब भी कई ग़लतफहमियाँ फैली हुई हैं।
विषय है: आयुर्वेद में सफेद दाग को “कुष्ठ” क्यों कहा जाता है?
आयुर्वेद, जो कि भारत की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है, उसमें “कुष्ठ” शब्द का अर्थ केवल कोढ़ (leprosy) नहीं होता।
बल्कि “कुष्ठ” एक समग्र शब्द है — इसका उपयोग हर प्रकार की त्वचा संबंधी रोगों के लिए किया जाता है।
🩺 आयुर्वेद में कुष्ठ के प्रकार:
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महा-कुष्ठ – गंभीर, शरीर को हानि पहुँचाने वाले रोग
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क्षण-कुष्ठ – हल्के, केवल त्वचा तक सीमित रोग
सफेद दाग, जिसे आयुर्वेद में “श्वित्र” कहा जाता है, उसे क्षण-कुष्ठ की श्रेणी में रखा गया है।
इसका सीधा अर्थ है कि यह रोग न संक्रामक है, न खतरनाक।
❌ भ्रांतियों की जड़
समाज ने “कुष्ठ” शब्द को केवल कोढ़ या छूत की बीमारी मान लिया —
और यहीं से शुरू हुई गलतफहमी और सामाजिक भेदभाव।
लोगों ने सफेद दाग को छूत की बीमारी समझकर इससे प्रभावित लोगों से दूरी बनानी शुरू कर दी।
जबकि सच्चाई यह है कि:
👉 सफेद दाग न छूने से फैलता है,
👉 न ही यह किसी तरह का संक्रमण है।
🌿 आयुर्वेद क्या कहता है?
आयुर्वेद के अनुसार श्वित्र का कारण शरीर के त्रिदोषों (वात, पित्त, कफ) में असंतुलन होता है —
जैसे:
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अनुचित खानपान
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पाचन संबंधी गड़बड़ी
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मानसिक तनाव
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और जीवनशैली की असंतुलन
🪷 समय है सोच बदलने का
अब वक्त है समाज में फैली इन भ्रांतियों को तोड़ने का।
हमें समझना होगा कि सफेद दाग ना तो पाप है, ना सजा —
यह बस त्वचा का एक रंग परिवर्तन है।
रंग बदला है, पर इंसान नहीं।
उन लोगों को हमारे समर्थन और सम्मान की ज़रूरत है — न कि अलगाव की।
✨ प्रेरणात्मक कविता: “रंग नहीं, जीवन है ये”
ना दर्द बाँटा, ना किसी से शिकायत की,
बस चुपचाप समाज की हर रीत निभाई।
जो श्वेत रंग था शरीर पर उभरा,
लोगों ने उसी में कमी की परछाई।
कभी ग़लतफ़हमी बनी पहचान,
कभी रोग कह कर किया अपमान।
पर क्या रंग बदल जाने से
कम हो जाती है किसी की जान?
ये रंग नहीं है, बस एक निशान है,
जिसे समय ने त्वचा पर लिखा है।
पर आत्मा? वो तो आज भी वही है —
साफ, सच्ची और मजबूत।
चलो अब ग़लतफहमियाँ मिटाएँ,
सफेद को भी रंगों में अपनाएँ।
हर त्वचा, हर इंसान,
सम्मान और प्यार का है हकदार।
🤍 अंत में एक संदेश:
सफेद दाग कोई श्राप नहीं, बल्कि एक पहचान है।
समाज को अब जागरूक होने की ज़रूरत है —
और हमें गर्व से कहना चाहिए:
“Vitiligo Support India – हमारी स्किन, हमारा गौरव!”