एक दाग़… जिसे मिट्टी भी नसीब नहीं हुई: विटिलिगो और समाज की बीमार सोच”

एक दाग़… जिसे मिट्टी भी नसीब नहीं हुई: विटिलिगो और समाज की बीमार सोच”

आज सुबह मेरी एक दीदी से बात हो रही थी।
उन्होंने एक ऐसा किस्सा सुनाया जिसने मुझे अंदर तक झकझोर दिया।
मैं कुछ देर तक शांत बैठा रहा — सोचता रहा कि हम किस समाज में जी रहे हैं?

उन्होंने बताया कि कुछ गाँवों में, अगर किसी को सफेद दाग (Vitiligo) होता है,
तो मृत्यु के बाद भी उसे गांव के श्मशान में दफनाने या जलाने की अनुमति नहीं मिलती।
सिर्फ इसलिए क्योंकि उसकी त्वचा पर दाग़ थे!

जरा सोचिए…

एक इंसान, जो ज़िंदगी भर समाज की उपेक्षा सहता रहा —
और जब वह दुनिया छोड़ गया,
तब भी उसे चैन से मिट्टी तक नसीब नहीं हुई।

क्या सिर्फ इसलिए,
क्योंकि उसकी त्वचा समाज की “परिभाषा” के अनुसार सामान्य नहीं थी?

ये विटिलिगो की नहीं, हमारी सोच की बीमारी है।

  • विटिलिगो कोई छूत की बीमारी नहीं है।

  • यह न तो पाप का फल है, न ही कोई श्राप

  • यह एक Autoimmune Skin Condition है — जिसे विज्ञान समझ चुका है, लेकिन समाज अब भी नहीं समझ पाया

आज भी:

  • बच्चे स्कूल से निकाले जाते हैं,

  • युवा नौकरियों में भेदभाव झेलते हैं,

  • लड़कियाँ रिश्तों में तिरस्कार का सामना करती हैं,

  • और कुछ को तो मरने के बाद भी इज़्ज़त नहीं मिलती

अब बहुत हो चुका। अब चुप नहीं बैठेंगे।

अब वक्त है:

  • हर ताने के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का,

  • हर भेदभाव के खिलाफ खड़े होने का,

  • और उस सोच को चुनौती देने का
    जो किसी को सिर्फ उसकी त्वचा के रंग के आधार पर कमतर आंकती है।

Vitiligo Support India: एक बदलाव की शुरुआत

हम एक ऐसा मंच बना रहे हैं —
जहाँ कोई अकेला न हो,
जहाँ सम्मान मिले,
जहाँ सुनवाई हो,
जहाँ दाग़ से डर नहीं, गर्व हो।

क्योंकि जो इंसान ज़िंदगी भर तिरस्कार सहता रहा —

उसे कम से कम मौत के बाद तो चैन मिलना चाहिए।

आइए मिलकर एक सोच को बदलें।

एक दाग़ नहीं —
इसे इज़्ज़त बनने दें।

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