एक प्रोफेसर जो अकेले रह गए — आइए उन्हें फिर से जोड़ें…

“एक प्रोफेसर जो अकेले रह गए — आइए उन्हें फिर से जोड़ें…”

कभी-कभी इंसान बहुत कुछ जानता है… पर अपने ही भीतर की लड़ाई में हार जाता है।

आज हम बात कर रहे हैं एक गणित के प्रोफेसर की — जिन्होंने उम्रभर लोगों को पढ़ाया, सवाल सुलझाए, रास्ता दिखाया…
लेकिन अब खुद सवालों में उलझ गए हैं।

“शादी हो, त्योहार हो, फंक्शन हो…”

लोग अपने रिश्तों में व्यस्त रहते हैं,
लेकिन एक कोना ऐसा भी होता है जहाँ कोई नहीं आता — क्योंकि वहाँ कोई “है” ही नहीं।

वो प्रोफेसर अब किसी समारोह में नहीं जाते।
नज़रों से बचते हैं।
उनका खाना पैक होकर घर पहुंचता है — जैसे उनकी मौजूदगी बस एक नाम भर रह गई हो।

क्या हम इतने अकेले हो गए हैं?

क्या समाज का डर हमें हमारे ही खोल में बंद कर चुका है?

उन प्रोफेसर ने सिर्फ किताबें नहीं पढ़ाईं —
उन्होंने जिंदगी भी सीखी है।
पर उन्हें भी ज़रूरत है — एक कम्युनिटी की,
जहाँ उन्हें कोई सुने… समझे… और बिना जजमेंट के स्वीकार करे।

एक अपील — आपके लिए:

अगर आपके आस-पास भी कोई ऐसा है जो भीड़ से डरने लगा है, जो अपनी ही परछाई से कटता जा रहा है —
तो प्लीज़, उससे कहिए —
“तुम अकेले नहीं हो।”

हमारा उद्देश्य:

Vitiligo Support India सिर्फ एक प्लेटफॉर्म नहीं —
यह हर उस आवाज़ की पुकार है जो सालों से चुप है।
हमारा मिशन है:

  • सुनना

  • जोड़ना

  • और बिना डर के स्वीकार करना।

एक कविता… उस प्रोफेसर के नाम:

मैं भी था वहाँ…
भीड़ थी, रौशनी थी, शहनाइयाँ भी बज रही थीं,
पर एक चेहरा वहाँ नहीं था — जो होना चाहिए था।
किसी को फर्क नहीं पड़ा…
कि जो गणित के सवालों को हल करता था,
अब ज़िंदगी के सवालों से हार गया है।
वो भीड़ नहीं चाहता, न शोर…
बस एक ऐसा रिश्ता चाहता है —
जो बिना सवालों के उसे अपना ले।

आइए, मिलकर कहें:

“तुम जैसे हो, वैसे ही बहुत अनमोल हो।
चलो फिर से जुड़ते हैं — इस बार, बिना डर के।”

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