जब अपना ही साथ न दे… परिवार से भावनात्मक सहयोग क्यों नहीं मिलता?

जब अपना ही साथ न दे… परिवार से भावनात्मक सहयोग क्यों नहीं मिलता?

 

लेखक: रवीन्द्र जायसवाल
श्रेणी: मानसिक स्वास्थ्य | सामाजिक व्यवहार | विटिलिगो अनुभव


क्या आपने कभी महसूस किया है कि जब जिंदगी सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही हो, तब अपने ही लोग आपको सबसे ज्यादा अकेला कर देते हैं?
क्या विटिलिगो से प्रभावित लोगों को घर में ही छिपाया जाना चाहिए या उन्हें गर्व के साथ अपनाना चाहिए?
इस सवाल का जवाब न सिर्फ सामाजिक, बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर भी जरूरी है।


 जब परिवार ही खुद से दूर कर दे

विटिलिगो केवल त्वचा से जुड़ी एक ऑटोइम्यून कंडीशन है, लेकिन समाज ने इसे शर्म का विषय बना दिया है।
और दुर्भाग्यवश, कई बार परिवार भी इसी सोच का हिस्सा बन जाता है।

  • उसे छिपाना – मेहमानों के आने पर विटिलिगो से प्रभावित सदस्य को सामने न लाना।

  • रिश्तों में दूरी – शादी-ब्याह के वक्त उसे “प्रॉब्लम” की तरह देखना।

  • अनचाही सलाहें – “ये मत खाओ”, “वहां मत जाओ”, “ये दवा लो”… जैसे आदेश, सहयोग की जगह नियंत्रण बन जाते हैं।

👉 जिसे सबसे ज्यादा अपनाने की जरूरत होती है, उसे ही अलग कर दिया जाता है।


भावनात्मक असर क्या होता है?

जब अपने ही लोग इस तरह का व्यवहार करें, तो इसका असर सिर्फ बाहर नहीं, अंदर तक होता है:

  • व्यक्ति खुद को घर में बेगाना महसूस करने लगता है।

  • उसे लगता है कि वह परिवार पर बोझ है।

  • उसका आत्मविश्वास टूटने लगता है।

  • वह तनाव, डिप्रेशन और आत्मग्लानि का शिकार हो सकता है।

👉 क्या प्यार और सहयोग का समय यही नहीं होता जब कोई मुश्किल में हो?


 परिवार को क्या करना चाहिए?

अगर किसी घर में कोई विटिलिगो से प्रभावित है, तो यह बेहद जरूरी है कि परिवार उसकी ढाल बने, न कि दीवार।

  • उसे छिपाने के बजाय, गर्व से अपनाएं।

  • उसकी पहचान को सम्मान के साथ स्वीकारें

  • उसे सामाजिक आयोजनों से दूर न रखें, बल्कि साथ ले जाएँ।

  • उसकी भावनाओं को समझें, मजाक न बनाएं, बल्कि हौसला दें।

👉 परिवार अगर साथ हो, तो आधी लड़ाई वहीं जीत ली जाती है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *