क्या सुंदरता सिर्फ त्वचा तक सीमित है? – विटिलिगो से प्रभावित लोगों की आवाज़
लेखक: रविन्द्र जायसवाल
श्रेणी: जागरूकता | विटिलिगो | समाज और सोच
हमारे समाज में “सुंदरता” शब्द का जिक्र होते ही ज़ेहन में एक छवि उभरती है — गोरी, बेदाग और चमकती त्वचा। लेकिन क्या यही असली सुंदरता है? क्या किसी इंसान का मूल्यांकन सिर्फ उसकी त्वचा के रंग या दाग से किया जाना चाहिए?
यह सवाल खास तौर पर तब और ज़्यादा मायने रखता है जब हम बात करते हैं विटिलिगो से प्रभावित लोगों की। एक ऐसी स्थिति, जो न तो संक्रामक है, न ही कोई गंभीर बीमारी — बल्कि एक जैविक प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से मेलानोसाइट्स (जो स्किन को रंग देते हैं) पर हमला कर देती है।
जब पहचान बन जाती है एक ‘दाग’
विटिलिगो से पीड़ित लोगों की सबसे बड़ी चुनौती यह नहीं होती कि उनकी त्वचा पर सफेद धब्बे हैं, बल्कि यह होती है कि समाज उन्हें सिर्फ उन्हीं धब्बों से पहचानने लगता है।
उनकी काबिलियत, उनकी सोच, उनके सपने — सब कुछ पीछे छूट जाता है, और सामने रह जाता है बस एक “अलग दिखने वाली” त्वचा।
शादी के प्रस्तावों में ठुकराया जाना, नौकरी के अवसरों में भेदभाव झेलना, या समाज के बीच हीन भावना का शिकार होना — ये सब उदाहरण बताते हैं कि हमारी सोच अब भी कितनी सतही है।
विज्ञान क्या कहता है?
हमारी त्वचा का रंग एक प्राकृतिक प्रक्रिया का नतीजा है। इसका सौंदर्य से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए।
विटिलिगो कोई बीमारी नहीं है, यह किसी की अच्छाई, योग्यता या आत्म-सम्मान को परिभाषित नहीं करता।
हमें सोच बदलनी होगी
अब समय आ गया है कि हम सुंदरता को केवल बाहरी रूप से जोड़ना बंद करें।
असली सुंदरता वह है जो हमारे भीतर है — हमारी इंसानियत, व्यवहार, आत्मविश्वास और दृष्टिकोण में।
हर इंसान में खूबसूरती होती है, चाहे उनकी त्वचा किसी भी रंग की हो या उसमें कोई बदलाव क्यों न हो। हमें इस सोच को अपनाना और फैलाना होगा कि हर व्यक्ति खास है — और उसका सम्मान सिर्फ उसकी त्वचा नहीं, बल्कि उसके दिल और विचारों के लिए होना चाहिए।
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